Tuesday, November 15, 2011

Ishtiyaaq


थमी दिल की धड़कन 
आज जैसे थिरकने लगी
उन्हें देख के बरसों बाद 
ज़िन्दगी जैसे चल पड़ी 

झोंका हवा का ले गया उन गलियों से
जहाँ चलते थे दोनों कभी किसी वक़्त मैं 
दो चुटकी पलों मैं 
एक सदी जैसे बीत गयी

बातें होतीं थी कुछ कुछ
कभी बस सर्गोश्हियाँ
अब तोह कुछ नहीं दरमियाँ
सिवाय खुला आसमान...

मौसम तो बदल गए
कदम मगर वही थें
नज़रें  उनपे जमी हुई 
ख़ुशी रोम मैं जलती गई 

होंगे वापस साथ 
मन मैं वोह ऊंस था
के आँचल मैं आज
दो भीगे बादल थे

आज दिल फिर से गुनगुनाया 
लफ्ज़ उसको मिल गए 
कहना था बहुत कुछ 
मगर...
अश्क ही कहानी बता गए...


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